Thursday, December 15, 2011

मैं रामगढ बांध हूं....

.... मैरे जन्मदाता जयपुर के पूर्व महाराजा
माधोसिंह 1895 में नीवं लागाकर मुझे पाला पोसा और मेरा अस्तितिव 1903 में
आ गया था...उन्होंने मुझे गुलाबीनगरी के लोगों की सेवा करने के लिए पैदा
किया और वह वह काम मैने करीब सौ साल तक लोगों को पानी पिला कर किया.....
इन सो सालों में लोगों ने मुझे काफी दुलार भी दिया.. और मेरी आगोश में
बैठकर सुख दुख के लम्हे भी गुजारे... लेकिन आज मैं बरबादी की कगार पर
खाडा हूं... जिनकी परेशानियो में मै गवाह रहा... आज उन्होंने भी मुझसे
मौड लिया है.. मैरे दम पर लोगं के आशीर्वाद लेने वाले और जेब भरने वाले
सरकारी महकमे ने भी मुंह मोडकर जता दिया है कि ढलते सूरज को सलाम नही
किया जाता... यही कारण है कि वे लोग बीसलपुर की और मुंह कर चुके
हैं..लेकिन कोई ये तो जाने की मेरी इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है...
लोग अभी भी मेरे पेट को चीर कर पानी निकालने में कोई कसर नही छोड रहे
हैं.... जबकि मेरे लिए आने वाले पानी में खुद सरकारी विभागों ने यंहा तक
की जो लोग खेती करते हैं उन्होंने भी पत्तरों को बांधकर रोडे अटका
दिये... कुछ लोगों को दर्द भी होगा... लेकिन ये दर्द सिर्फ उनकी जुबा से
टेलीविजन के चेहरों तक सिमट गया है... अब लोग आते है मेरी बदहाली पर हंसी
उडाकर लौट जाते हैं... जिन लोगों ने एनीकट्स बनाये तलाई बनाई वे लोग अब
सिर्फ और सिर्फ भगवान को दोश देकर अपने आपको बचा रहे हैं..