Sunday, May 2, 2010

बचा लो मुझे... मैं पानी हूं

हां मेरा नाम पानी है।
मेरे अतीत की एक कहानी है।।
मेरे पिता कहते है, वंश हमारा सुसुप्त होने जा रहा है।
हंसता-खेलता कुनबा लुप्त होने जा रहा है।।
आपके जुल्मों से मैं बहुत छला गया।
इसलिए सबसे पहले आंखों से चला गया।।
क्योंकि आपने किया है मेरा दुरूपयोग, बरबादी।
आज की पोजीशन आप स्वयं ने ला दी।।
कभी मेरा सम्मान था।
इस बात पर मुझे गुमान था।।
मैं कुएं से निकाला जाता था।
तब मैं नीचाई से ऊंचाई की ओर आता था।।
मटकों में डालने के लिए मेरा सिर ऊंचा किया जाता था।
तब मैं फूला नहीं समाता था।।
नई नवेलियों के सिर पर मटकों में झूल जाता था।
गर्व से मेरा सीना फूल जाता था।।
लोग मुझे लोटा गिलास में सम्मान से सजाते थे।
मेरी कद्र करते थे, व्यर्थ नहीं बहाते थे।।
तब मैंने कभी अभाव का रोना नहीं रोया।
अपना आपा कभी नहीं खोया।।
पहले में बहुत था, आपकी आस था।
आपसे दूर नहीं, बल्कि आपके पास था।।
लोग अनायास ही मेरा सपना पाल लेते थे।
दस बीस फीट खोदकर मुझे निकाल लेते थे।।
क्योंकि तब आप मेरा सम्मान करते थे, व्यर्थ नहीं बहाते थे।
लोटा गिलास में सजाते थे, कम से ही काम चलाते थे।।
समय ने करवट बदला, मुझे व्यवस्था ने जकड़ा।
मेरा पथ टेकी, पाइप और टूंटी ने पकड़ा।।
अब मैं टंकी की ऊंचाई से नीचाई पर लाया गया।
मैं अपमानित हुआ, मुझ पर जुल्म ढ़हाया गया।।
पाइप के लीकेज मुंह चिढ़ाने लगे।
मुझे अनावश्यक ही बहाने लगे।
टूटी टंूटियों से यूं ही बहता रहा।
अपनी दर्द भरी कहानी कहता रहा।।
पाइप के लीकेज से सड़क पर सागर बन गया।
वक्त के थपेड़ों से सरिता से गागर बन गया।।
सभी को बता देना, मैं पानी हूं।
गुजरे वक्त की एक कहानी हूं।।
मुझे बूंद-बूंद बचाना तुम्हारे काम आऊंगा।
नहीं तो तुमसे दूर-बहुत दूर चला जाऊंगा।।
मुझे पाने के लिए आपकी आंखें बरसेंगी।
पानी-पानी कहकर आपकी पीढियां तरसेंगी।।
साभार- अब्दुल अय्यूब गौरी, जयपुर

वोल्वो नहीं डीलक्स प्लीज...

रोडवेज बसों को खत्म कर रहा अपने बेड़े से
आम आदमी की यात्रा हुई महंगी
निजी बसों को फायदा पहुंचाने के लिए राजस्थान रोडवेज ने डीलक्स बसों की खरीद बंद कर दी है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि रोडवेज के ही आंकड़े इस बात का खुलासा कर रहे है। आंकड़ों से साफ है कि पिछले दो साल में करीब १८०० बसों की खरीद के लिए अनुमति मिलने के बाद भी रोडवेज प्रशासन ने एक भी डीलक्स बस नहीं खरीदी।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बजट वर्ष २००७-०८ से पूर्व रोडवेज प्रशासन करीब ५० डीलक्स बसों की सालाना खरीद करता था। जिससे यात्रियों को खटारा और पुरानी बसों की जगह नई बसों की सुविधा मिल सके। वर्ष २००७-०८ में राज्य सरकार से अनुमति मिलने के कारण किसी भी श्रेणी की बस नहीं खरीदी गई। इसके बाद रोडवेज को वर्ष २००८-०९ में राज्य सरकार ने ११५० बसों को खरीद करने की अनुमति मिली, इन बसों में ५० बसें डीलक्स व एसी बनवाई जानी थी, लेकिन रोडवेज प्रशासन ने इस और बेरुखी अपनाई। रोडवेज ने स्वीकृत की गई ११५० बसें एक्सप्रेस कैटेगरी की तैयार करवा ली। चालू सत्र में भी सरकार ने रोडवेज को ६५० बसें खरीदने को हरी झंडी दे दी, लेकिन रोडवेज इस बार भी डीलक्स और एसी बसें खरीदने में रूचि नहीं दिखा रहा हैं।
किराए का अंतर --जयपुर से दिल्ली का किराया डीलक्स - ३०० रुपए, एसी - ४०० रुपए व वोल्वो -५५० रुपए है। डीलक्स बसें नहीं होने से मध्यम वर्गीय लोगों के लिए सस्ती यात्रा का विकल्प समाप्त हो गया, जिसका फायदा निजी बस ऑपरेटर्स उठा रहे है। डीलक्स बसों का रूट जयपुर-कोटा, जयपुर-जोधपुर, जयपुर- आगरा ही रहता था। यही कारण है कि पिछले सालों में हाइवे पर दौडऩे वाली रोडवेज की डीलक्स बसों की संख्या मात्र २ रह गई है। जबकि पिछले कुछ साल पहले इनकी संख्या १६ से १८ हुआ करती थी। निजी बस ऑपरेटर्स रोडवेज से कम्पीटिशन के फेर में अपनी रेट्स कम रखते थे, लेकिन जब सरकारी एजेंसी ही फेल हो गई तो उन्होंने भी मनमानी दरें बढ़ाकर मध्यमवर्गीय लोगोंं की जेब पर वजन डाल दिया।
यह है तकनीकी कारण
डीलक्स बसें ५ किलोमीटर चलने के बाद तकनीकी तौर पर सेमी डीलक्स किराए पर संचालित होती है, क्योंकि बसों का स्तर डीलक्स के मुताबिक नहीं रहता। ऐसे में रोडवेज ८० फीसदी से ज्यादा डीलक्स बसों को सेमी डीलक्स बसों के किराए पर ही संचालित कर रहा है। जिम्मेदारी से बचने के लिए डीलक्स जोन के मैनेजर ने दिल्ली व आगरा हाइवे को छोड़कर दूसरे मार्गो पर चलने वाली डीलक्स बसों को अन्य आगारों में ट्रांसफर कर दिया। रोडवेज प्रशासन एसी व वोल्वों बसों पर ही ध्यान दे रहे है जबकि मध्यम श्रेणी के यात्रियों को रोडवेज प्रशासन के कारण महंगी यात्रा करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

सीएमओ से गायब होती हैं पत्रावलियां!

मुख्य सूचना आयुक्त ने दिया आदेश जांच कर तय करें जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री कार्यालय से कभी भी कोई जरूरी दस्तावेज गायब हो सकते है। प्रदेशवासियों की ओर से मुख्यमंत्री को भेजे जाने वाले ज्ञापन और शिकायती पत्रों को संभालने की जिम्मेदारी भी तय नहीं है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि मुख्य सूचना आयुक्त की ओर से हाल ही जारी एक आदेश का आशय तो यही निकलता है। आदेश में साफ लिखा है कि सबूतों के आधार पर तो प्रार्थी केे पत्र सचिवालय को भेजे गए है, जबकि जवाब में किसी भी तरह का कोई भी ज्ञापन फैक्स, स्पीड पोस्ट मिलने से इनकार कर दिया।
जानकारी के अनुसार स्वेज फार्म संयुक्त महासंघ के अध्यक्ष संजय शर्मा ने २६ अप्रैल २००८ को स्पीड पोस्ट के जरिए ८८ पेजों का एक शिकायत पत्र भेजा था। पत्र में तीन आवासीय योजनाओं में कुछ प्रशासनिक अधिकारियों पर मिलीभगत कर पद के दुरूपयोग की शिकायत की थी। उसके बाद महासंघ के प्रतिनिधि मंडल ने ४ अगस्त, ०८ मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव को ज्ञापन सौंपा गया। शर्मा ने १५ दिसम्बर, ०८ को सीएमओ में फैक्स कर अपनी शिकायत दर्ज कराई। लंबे अंतराल के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होते देख शर्मा ने मार्च, ०९ को सूचना के अधिकार में मुख्यमंत्री कार्यालय से तीनों शिकायतों पर क्या कार्रवाई की गई इसकी जानकारी मांगी। जब निर्धारित अवधि में सूचना नहीं दी गई तो प्रथम अपील अधिकारी के सामने अपील की, वहां भी कोई जवाब सीएमओ से नहीं आया। उसके बाद शर्मा ने मुख्य सूचना आयुक्त के सामने अपील की। सूचना आयोग की ओर से भेजे गए नोटिस का मुख्यमंत्री कार्यालय ने जवाब दिया कि विभिन्न तरीकों से भेजे गए तीनों ही पत्र प्राप्त नहीं हुए है। सुनवाई में शर्मा ने फैक्स और स्पीड पोस्ट की रसीदें दिखाई।
उपस्थित ही नहीं
सूचना के अधिकार के प्रति मुख्यमंत्री भले ही सम्मान करते हो, लेकिन उनके कार्यालय में तैनात अधिकारियों को ऐसा नहीं लगता। यही कारण है कि आयोग की सुनवाई में मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से पक्ष रखने के लिए कोई उपस्थित नहीं था। जानकारों का कहना है कि जब जिम्मेदार लोग ही कानून की इस तरह से अवहेलना करेंगे तो और सरकारी विभागों से क्या अपेक्षा की जा सकती है।
ये दिया आदेश
आयोग के अध्यक्ष एमडी कौरानी ने नरम रूख अपनाते हुए लिखा कि मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी जांच करवाए कि उनके कार्यालय में पत्र मिलने के बाद भी उपलब्ध क्यों नहीं हो रहा है। जिस रजिस्टर्ड पत्र का संदर्भ दिया गया है वह पार्सल उनके कार्यालय में प्राप्त हुआ था या नहीं। यदि नहीं हुआ तो समस्त पत्रादि कहां गए। यह जांच कर उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुए अग्रिम कार्यवाही करवाई जाए।