Saturday, April 24, 2010

देह व्यापार की जकड़ में राजधानी

सच्ची कहानी जो एक लड़की की जिंदगी में काला सच बनकर आई
शहर में बढ़ती वारदातों की तह में जाने पर निकली सच्चाई
मैं राजधानी के एक इलाके में मध्यम वर्र्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हूं। खूबसूरत होने के साथ ही यौवन की दहलीज पर भी पैर रख दिया था। यही कारण था कि परिवार आर्थिक स्तर कमजोर होने से छोटी-छोटी चीजों के लिए उन पर निर्भरता समाप्त करने की इच्छा रहती थी। लड़कियों की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर अपनी गिद्ध जैसी नजरें गढाए जानवर सरीखे लोग मौके की तलाश में बैठे रहते है। पलभर की चुप्पी जीवनभर को आंसुओं में डुबाने के लिए काफी होते है। ऐसे ही एक गिरोह की गिरफ्त में आने के बाद उनके बाद अपने आप को आजाद मानकर सादा जीवन जीनें की आस जगाई थी, लेकिन आए दिन अनजाने लोगों के फोन आने और परेशान करने पर मैं टूट चुकी हूं। कभी आत्महत्या करने का विचार आता है तो परिवार के लोगों को देख हिम्मत जवाब दे जाती है। चेहरे पर आने वाली हलकी सी हंसी पता नहीं उन लोगों को क्यों बुरी लगती है कि किसी न किसी तरीके से अतीत सामने ला देते है। उसी अतीत को सबके बीच शेयर करके मैं सहानुभूति नहीं बटोरना चाहती, मैं तो चाहती हूं कि वे लड़कियां जो अपने परिवार का सहारा बनना चाहती है बाजार में बैठे भूखे दरिंदों को पहचाने और उनके हाथों मेंं अपने आप को झूलने नहीं दे। मैं जालिमों को सजा देने जैसी बात पुलिस महकमे से इसलिए नहीं कहूंगी कि ज्यादातर काम उन्हीं की सरपरस्ती में होते है। अपनों पर जुल्म से छुटकारा पाने के लिए जब मीडिया को सहारा माना तो कड़वी सच्चाई ये निकलकर आई कि बगैर किसी सबूत के कुछ भी कर पाने में वे भी अपंग है। अपने शरीर को खिलौना बनने से पहले बचकर मैंने शायद गलती की। या उन शैतानों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत क्यों कर रही हूं। ऐसे सवाल है जो मेरे जेहन में टनों वजनी पत्थर के माफिक लगते है।
मैं पूनम (बदला हुआ नाम)अपनी जिंदगी के कड़वे सच के बारे मेंं कुछ बताना चाहती हूं। जो कुछ मेरे साथ हुआ वो किसी और के साथ न हो। किसी के विश्वास को कोई हवस का शिकार बना दें तो दुबारा वो किसी पर चाहकर भी विश्वास नहीं कर पाती। मेरे साथ भी एक ऐसा ही हादसा हुआ है जिसके बाद मेरा किसी पर विश्वास करना मुश्किल हो गया।
कॉलेज में पढ़ते समय मैंने एक फेयर में जॉब प्लेसमेंट की सर्विस ली। उस फेयर के कुछ दिनों बाद मेरे पास जॉब के लिए फोन से ऑफर आया। फोन पर बात की तो एक शख्स बोला जिसने अपना नाम सन्नी बताया और बोला कि मैं मॉडलिंग करता हूं। जब मैंने उससे अपना नाम और नंबर की जानकारी देने की बात पूछी तो उसने बताया कि आपने जो फेयर में जॉब सर्विस के लिए अप्लाई किया था वहीं से जानकारी मिली है। मैंने सन्नी से फोन करने का कारण पूछा तो उसने बताया कि हम लोग शहर में एक ऑफिस खोल रहे है। जिसकी ऑपनिंग हो चुकी है। उसके लिए रिसेप्शन पर एक खूबसूरत लड़की चाहिए, आप जॉब करना चाहती है तो इंटरव्यू देने आ सकती है। मैंने इस बारे में सोच कर बता दूंगी कहा और फोन काट दिया। उसके बाद करीब-करीब रोजाना ही फोन आने लगा और एक बार इंटरव्यू देकर जॉब देख लेने के लिए समझाने लगा। आखिरकार मेंने इंटरव्यू के लिए उससे एड्रेस पूछा तो उसने जो बताया वो मुझे समझ नहीं आया। उसने मुझे कंवेंस करते हुए पोलो विक्ट्री पहुंचने के लिए कहा। उसने बताया कि वहीं से एक लड़की और इंटरव्यू के लिए आ रही हैं। दोनों को लेने के लिए मैं अपने स्टाफर्स को भेज दूंगा।
फोन बात करने के हिसाब से मैं पोलो विक्ट्री तिराहे पर पहुंच गई। करीब १५ मिनिट बाद एक लंबी सी पतली लड़की जो ज्यादा खुबसूरत तो नहीं थी, लेकिन बात करने में एक्सपर्ट सी लग रही थी। वहां पर आई। उससे इंटरव्यू के बारे में बातें की करीब १० मिनिट बाद उसके फोन पर सन्नी का फोन आया। उनके बात करने के करीब ५ मिनिट बाद ही एक लड़का मोटरसाइकिल से हमें लेने वहां पहुंच गया। हम दोनों उसकी बाइक पर बैठकर चल दिए। बाइक चलाने वाला युवक कई रास्तों से होता हुआ टोंक फाटक पुलिया की तरफ लेकर आया। पुलिया पार करके उसने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी और दूर जाकर मोबाइल पर किसी से बात की। थोड़ी देर बाद वहीं पर एक और लड़का आया। मुझे उस लड़के को देखकर अच्छा नहीं लगा तो मैंने साथ वाली लड़की से वापिस लौट चलने के लिए कहा। लड़की ने समझाया कि यहां तक आ ही गए है तो इंटरव्यू देकर चलते है। मैं भी उसके इस तर्क को मान गई। हम दोनों पैदल वाले लड़के के साथ चल दिए। वो लड़का हमें किसी ऑफिस में ले जाने की बजाय किसी घर में ले गया। देखने में ही नजर आ रहा था कि जहां हमें लाया गया है वो किराए पर है। मुझे वहां का माहौल देखकर संदेह हुआ, लेकिन साथ में एक और लड़की होने के कारण डर नहीं लगा। घर में ऊपर की ओर एक कमरा बना था जिसमें तीन लड़के बैठे हुए थे। थोड़ी देर तो वो हमसे नहीं बोले, लेकिन कुछ देर बाद एक ने दूसरे को इशारा किया तो एक लड़का किसी काम की कहकर कमरे से बाहर निकल गया। उसके बाद मेरे साथ वाली लड़की को उसने कुछ इशारा किया। लड़की ने बगैर कुछ किए अंदर बने एक कमरे में चली गई और वहां से तीन ग्लास कोल्ड ड्रिंक बनाकर ले आई। हम तीन लोगों ने कोल्ड ड्रिंक साथ बैठकर ही पी और उसके बाद उस लड़की को इंटरव्यू देने के लिए अंदर ही बने एक और कमरे में भेज दिया। थोड़ी दूर बैठा हुआ सन्नी नाम का युवक मेरे करीब आकर बैठ गया। इस बीच मेरे साथ आने वाली लड़की अंदर वाले कमरे से बाहर आई और कुछ ढूंढकर वापिस कमरे में चली गई, उसने दरवाजा भी बंद कर लिया। मुझे अचानक सिर भारी लगने लगा, ऐसा लगा जैसे धरती हिल रही हो। इस बात की जानकारी मैंने सन्नी को दी। उसने हमदर्दी जताते हुए मुझे अपने हाथों में जकड़ लिया और अपनी तरफ खींचने लगा। उसके बाद जैसे-जैसे दिमाग ज्यादा घूम रहा था सन्नी मेरे कपड़े खोलने लगा। मैं अपने आप को उससे छुटकारा पाने के लिए हाथ पैर चला रही थी, लेकिन नशे में होने के कारण जैसे हिम्मत ही नहीं रही हो। मुझे अहसास हुआ कि मेरे कमर से ऊपर के सभी तरह के कपड़े उतार लिए गए है। मुझे ऐसा लगा कि वो मेरे नीचे के कपड़े भी खोल रहा है तो मैं अपने आपको नियंत्रित करने की कोशिश करने लगी। मुझे होश आता दिख रहा था, इस दौरान मेरे हाथों में कोल्ड ड्रिंक का खाली गिलास आ गया। जिसे मैंने उठाकर जोर से फेंक दिया, ऐसा लगा जैसे वो गिलास दरवाजे से टकराया हो। छीना झपटी करते हुए मेंरे काफी खंरोंचे भी आई। दरवाजे पर जोर की आवाज सुनकर मकान मालकिन ने कमरे का दरवाजा खोलने की आवाज लगाना शुरू कर दिया। जब कुछ देर गेट नहीं खोला मैंरी आवाजें जोर-जोर से आने लगी तो मकान मालकिन और उनकी बहु दरवाजे के बाहर आकर तेजी से हिलाया। ये मुझे याद नहीं की दरवाजा किसने खोला लेकिन मकान मालकिन और उनकी बहु ने मुझे संभाला और कपड़े पहनाए। जब उन्होंने मेरे साथ वाली लड़की के लिए पूछा तो मैंने अंदर वाले कमरे की ओर इशारा कर दिया। वो लड़की और उसके साथ दो लड़के कमरे से बाहर निकले। मैं नशे में होने के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी, मकान मालिक का लड़का नर्सिंग में था उसने मुझे थोड़ी देर सो जाने के लिए कहा। इस दौरान मकान मालकिन और उनकी बहु मेरे साथ थे। हरकत करने वाले लोग वहां से रफूचक्कर हो गए थे। जब नशा कम हो गया तो मकान मालिक और मालकिन दोनों ऑटो में मुझे मेरे घर तक छोडऩे आए। उन्होंने मुझे समझाया और उनके खिलाफ पुलिस में कार्रवाई करने के लिए भी कहा। जो नंबर मेरे पास थे, जो नाम पते उन्होंने बताए थे वे सभी फर्जी निकले। मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पाई। इस हादसे को ना मैं अपने घर पर किसी को बता पाई और ना ही मैं किसी को कहने की हिम्मत जुटा पाई। क्योंकि जितना मैंने सोचा है उस लिहाज से सवालों की बौछार मुझे ही गलत ठहरा रही थी। मैं इतनी परेशान हो गई थी कि मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता था। मानसिक तनवा की इंतहा ही थी कि मैें सोने के लिए नींद की गोलियां खाने लगी थी और सिगरेट भी पीने लगी थी। मैं इतना भयभीत थी कि मैंने सुसाइड करने की कोशिश की। इसके लिए मैंने अपने ही घरवालों से दूरियां बनानी शुरू कर दी। यहां तक की अपने आपको मैंने एक कमरे में समेट लिया था। उस समय मुझे लगा कि क्यूं लोग बेटी के जन्म पर खुशियां नहीं मनाते। यहां तक की कुछ लोग तो बेटी के जन्म होने से पहले ही प्रसव कराने वाली दाई से उसे मारने के लिए कह देते थे। आज भी जब अखबारों में इस तरह की खबर पढ़ती हूं तो सिहर जाती हूं। आखिर मेरा वो गुजरा कल जो मेरी जिंदगी का अंधेरा था मेरे सामने आज भी खड़ा दिखाई देता है। कभी तो मुझे लगता है कि कोई मेरे कॉल्स आज भी टेप कर रहा है। यहां तक की अनजाने नंबरों से मुझे फोन किए जाते है।

Thursday, April 1, 2010

एटीएस के सीक्रेट फंड को लेकर सीेक्रेट वार

आतंकवादियों और देश विरोधी ताकतों तक पहुंचने के लिए खुफिया सूचना तंत्र विकसित करने के लिए राजस्थान एंटी टेरेररिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) के लिए बनाया गए सीक्रेट सर्विस फंड (एसएस फंड) को लेकर आजकल एटीएस में जबरदस्त खींचतान मची हुई है। वित्तीय वर्ष 2009-2010 में एसएस फंड के लिए मिले 35 लाख रुपए के खर्चे की यूटलाइजेशन रिपोर्ट 16 मार्च को पुलिस मुख्यालय को भेजी जा चुकी है, जबकि विभाग से भास्कर को छन-छनकर मिल रही खबर के मुताबिक इस मद में अब तक के खर्चे के बाद अभी 24 लाख रुपए बचे हैं, जिसके लिए सभी अधिकारियों से एडवांस में खर्चे के बाउचर भरकर मांगे गए है। जिस तरह से एटीएस की सब छोटी-बड़ी अंदरूनी बातें मीडिया तक पहुंच रहीं हैं, यह इसलिए भी चिंताजनक है कि अगर ऐसे ही खीचतान चलती रही तो आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी।
एसएस फंड के मामले में किसने, कितने के बाउचर भर कर दिए और किसने नहीं भरे यह तो विभाग के अधिकारी जाने, मगर इसको लेकर एटीएस में पुलिस अधिकारी-कर्मचारी दो धड़े में बट गए हैं। एक धड़ा एसएस फंड से इस तरह से खर्च को लेकर पूरी तरह से इसकी मुखालफत करने में जुटा है तो दूसरा किसी तरह से मामला शांत कराने में लगा है।
मुखालफत करने वाले धड़े को लोग कहते हैं कि एसएस फंड का दुरुपयोग न हो इसके लिए आईजी एटीएस को तत्कालीन एडीजी एके जैन ने फंड के तिमाही आडिट के अधिकार दिए थे, जबकि वर्तमान एडीजी कपिल गर्ग ने दिसम्बर महीने में आईजी के एसएस फंड का तिमाही आडिट करने के बाद नया आदेश जारी करके आईजी का आडिट अधिकार छीन लिया। वे कहते हैं कि इससे फंड के दुरुपयोग की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। एसएस फंड का उपयोग आतंकियों के खिलाफ सूचनातंत्र विकसित करने के लिए किया जाना चाहिए, जबकि इसका इस्तेमाल आला अधिकारी फर्नीचर, काफी मशीन, टेलीवीजन, कार की लग्जरी बढ़ाने आदि में कर रहे हैं, इस पर रोक नहीं लगी तो आगे इसका दुरुपयोग और बढ़ेगा।
दूसरा धड़ा कहता है कि एसएस फंड अन आडिटेड फंड है। एटीएस के मुखिया जो भी कर रहे हैं, वे ठीक है। वे कहते हैं कि हो सकता है कि उनके काम करने का तरीका कानून सम्मत न हो लेकिन उनकी नीयत पर हमे कोई शक नहीं है।

किसने सूचना दी, मुझे बताइए

एटीएस एडीजी कपिल गर्ग से सवाल
फंड से खर्चे के मद में आपने एडवांस में वाऊचर भरने के निर्देश दिए है?
देखिए एटीएस में सब कुछ सीक्रेट है। इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकता।
हमें आपके विभाग के लोगों ने ही बताया है कि आपने शाखा के सभी अधिकारियों को बुलाकर ऐसे निर्देश दिए है?
मैं कह चुका हूं कि ये सीक्रेट मसले है। आपको जो भी जानकारी दे रहा है वह गलत कर रहा है। आप उसकी जानकारी मुझे दीजिए।

ये जानकारी दे दीजिए कि फंड का कितना रुपया बचा है और कितना खर्च हुआ?
फंड में खर्च करने के बारे में तो सरकार भी नहीं पूछ सकती। एटीएस को सुरक्षा की जिम्मेदारियों को देखते हुए सूचना के अधिकार से परे रखा गया है। आप सूचना देने वाले की जानकारी दें तो बेहतर होगा, क्योंकि ऐसे लोगों की इस शाखा में जरूरत नहीं है। ऐसे व्यक्ति हमारी गोपनीयता कभी भी भंग कर सकते है। जिससे हमारी कार्यप्रणाली बाधित होगी।


मुझसे क्यों उगलवाना चाहते हैं
आईजी डॉ. आलोक त्रिपाठी से सवाल
क्या सभी अधिकारियों को एडीजी ने फंड की धनराशि इस्तेमाल के लिए एडवांस में वाऊचर के निर्देश दिए है?
देखिए फंड की जानकारी देने के लिए एडीजी अधिकृत है। इस बारे में आप उनसे ही बात कीजिए।
लेकिन हम तो आपसे यह जानना चाह रहे है कि आपने भी कोई वाऊचर भरा है क्या?
यह सीके्रट ब्रांच है। यहां की कोई भी, कैसे भी जानकारी नहीं दे सकता।

एटीएस का गठन पर तत्कालीन एडीजी एके जैन ने एसएस फंड का दुरुपयोग रोकने के उद्देश्य से इसके तिमाही आडिट की जिम्मेदारी आईजी एटीएस को करने के अधिकार दिए थे। आपको तो एसएस फंड के आडिट का अधिकार है?
इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता।
मुझे जानकारी मिली है कि आपने 31 दिसम्बर को एसएएस फंड का आडिट किया था?
आप मुझसे जबरदस्ती कबूल करवाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं?
नहीं मेरा ये इरादा नहीं है, अच्छा ये बता दीजिए कि क्या आईजी के आडिट करने के अधिकार खत्म कर दिए गए हैं?
आप तो सब जानते हैं, मुझसे क्यों कहलवाना चाहते हैं?
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सामने लाओ मै भी तो जानू
डिप्टी एसपी दिलीप शर्मा से सवाल
आपने खुद तो खर्चे का एडवांस वाऊचर भरा ही औरों से भी भरवाया है?
नहीं मैंने किसी से जबरन वाऊचर नहीं भरवाए। वैसे भी आजकल कोई किसी की कहां मानता है।
लेकिन इंस्पेक्टर्स का कहना है कि आपने जबरन भरवाए है?
ऐसा कोई कह रहा है तो सामने लाओ, मैं भी तो जानू कि जबरन वाऊचर क्यों भरे है।
चलिए ठीक है ये तो मानते ही हो कि आपने वाऊचर भरा है, क्या ये कानूनी तौर पर गलत नहीं है?
गलत और सही का फैसला करने का अधिकार अधिकारियों को है। इस बारे में आप उनसे ही बात करो।

एएसपी हेमंत शर्मा
आपने कितने के बाउचर भरें है?
मैं इस महकमे में नया आया हू्ं, मैं इस बारे में कुछ नहीं बता सकता। आप उच्चाधिकारियों से पूछे।