दिनेश गौतम, 9772222667
सरकार पिछले ५० सालों से गरीबी मिटाने का नारा देती रही है, लेकिन आज दिन तक गरीबों की संख्या बढ़ी ही है, भले ही आंकड़ों में इसका फीसदी कम हो गया हो। लेकिन अब जिस तरीके की सरकारी नीति चल रही है उससे मध्यमवर्गीय परिवार या तो झूठ, बेईमानी और अपराध करके उच्च वर्ग में शामिल हो जाए या फिर इमानदारी का चौला ओढ गरीब बन जाए। समाज के लोगों के बीच आज भी कुछ हद तक लोग न तो बेईमान कहलाना पसंद करते है और न ही गरीब ऐसे में लोग बैंक से कर्जा लेकर या किसी साहूकार के पास उधार कर अपने आप को समाज के लायक बना लेते है। नतीजा न तो कर्ज चुक पाता है और न ही वह मान सम्मान बचता है। सरकारी नीतियों की चर्चा करें तो समझ में आता है कि वाहनों पर सरकार ने रियायतों का पिटारा खोल दिया, लेकिन पेट्रोल के दामों पर बेतहाशा वृद्धि कर दी, फ्रिज, कूलर, एसी सस्ते कर दिए तो क्या हुआ बिजली महंगी कर दी। ऐसे में अब सरकारों को गरीबी हटाओ का नारा नहीं देकर गरीब मिटाओ का नारा दे देना चाहिए।
गर्मी की तपिश देख मन ललचा गया,सोचा क्यों लोग गर्मी से दूर भागते है। कितनी गालियां देते है। गर्मी नहीं आती तो पानी का मोल पता चलता? हमारे वैज्ञानिकों ने जो ठंडे करने के यंत्र एयरकंडीशन बनाए है उनका भोग कौन करता? प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी और शायद कुछ लोगों को ये नागवार गुजरे।
अब जिसके पास घर में खाने को दाने नहीं वो एक बिजणी खरीदने में डरता हो उसे एयरकंडीशन से क्या साबका। लेकिन हमारा देश तरक्की कर रहा है, इतनी तरक्की की सरकार ने प्रति व्यक्ति आय इतनी बढ़ा दी किसी को गरीब कहना ही बेईमानी है मध्यमवर्गीय परिवारों को खाने के लाले पड़ रहे है। हमारे देश की पोजीशन उस किवदंती की तरह जो कहती है कि सौ में से अस्सी बेईमान फिर भी मेरा देश महान। अब भला भ्रष्टाचार में इजाफा होगा तो देश चलाने वालों के साथ ही देश के बेईमानी का रेटिंग भी तो बढ़ेगा। हमारे देश में बेईमान बढ़ाना तरक्की ही तो है। सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को सभी मूलभूत सुविधा देना सरकार अपनी वाह-वाही समझ रही है, जबकि कर्जा लेकर इज्जत से जमीन खरीदने वालों को ठगा जा रहा है, सरकार ठगों को संरक्षण दे रही है। उन लोगों को कोई सुविधा यदि मिल जाए तो जेब फाडऩे वाले टेक्स शुरू कर दिए जाते है। हमारी राज्य सरकार की सोचो उसने बीपीएल परिवारों को २ रुपए किलो की दर पर अनाज उपलब्ध कराने की योजना शुरू की, मध्यमवर्गीय का विरोध शुरू हो गया। विरोध कर रहे परिवारों का कहना है कि तीन से पांच हजार रुपए की पगार में महीने का गुजारा नहीं हो रहा। दूध में पानी भी मिलाकर पीएं तो भी महंगा पड़ रहा है, सब्जी के दूरदर्शन कर रोटी खाएं तो भी महीने का आधा ही अनाज आ पाएगा। पढ़ाई को प्रत्येक बच्चों का हक कहने वाली सरकार ने निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने के मामले में खुली छूट दे रखी है, यही कारण है कि खुद से ज्यादा या अच्छे स्कूल में पढाने का ख्वाब देख रहे पेरेन्ट्स के सपने कुचल दिए है। सरकारी स्कूलों की दूरी इतनी ज्यादा है कि रोजाना हो रही शहर की वारदातों को सुन गरीब भी अपने बच्चों को अकले इतनी दूर भेजने से कतरा रहा है।
सही उपाय
ReplyDeletekya kabhi apna desh esi baton se upar uth payega?
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