Sunday, February 6, 2011

कुछ मन का, मन वालों से

dinesh gautam,9772222667
लोग पता नहीं क्यों जिम्मेदारी से जी चुराते है। ऐसा नहीं है कि मैं ऐसा नहीं करता, लेकिन दूसरों के बारे में पता नहीं ये जानकर अच्छा क्यों नहीं लगता। मैने कई दफा अपनी जिम्मेदारी और सरकार से वेतन पाने वालों की जिम्मेदारी को समझने की कोशिश की। उनकी जगह अपने आप को बिठाकर उनकी परेशानी भी जानना चाहा। यहां तक की उनके परिवार और मिलने वाली सुख सुविधाओं पर भी विचार किया तो लगा कि कुछ लोगों को छोड़ सभी अपने काम से जी चुराते है। कुछ लोग है जो काम को व्यक्तिगत मानते हुए पर्सनली इंटरेस्ट दिखाते है, लेकिन हकीकत में ऐसे लोगों की संख्या नाम मात्र की है। यहां तक की सरकार की ओर से मिलने वाली बहुत सी सुख सुविधाओं में थोड़ी भी कटौती इनको सहन नहीं होती। वेतन बढ़ाने की मांग हो तो बगैर अपने काम के बारे में सोंचे शामिल हो जाना तो इनकी फितरत है। ऐसे में बार-बार जिम्मेदारों की बात करना बेमानी सा हो गया है।
आईएएस लेते है हराम की पगार
कर्मचारियों के बारे में कहा जाता है कि वे तो काम से जी चुराते है , लेकिन सबसे बडे ओहदे पर बैठे ये बडे साहब भी हराम की पगार लेने से नहीं चूकते। सरकारी नीतियों के पालन के नाम पर लाखों करोड़ों के घोटाले तो इनके बाएं हाथ का कमाल है। कुछ साहब तो इस पद को केवल विभागीय मंत्री और मुखिया की चापलूसी के लायक ही मानते है। वैसे भी ओहदेदारों की काली कमाई देश की राजधानी के जरिए पता नहीं कहां जा रही है। जैसे ही कोई अवकाश मिलता है। ये ओहदेदार दिल्ली का टिकट कटा दो नंबर से कमाया गया रुपया रखने रवाना हो जाते है। नीति निर्धारक बनने वाले ये अधिकारी सभी नीतियों में अपना फायदे को रखकर चलते है। सरकार का मुखिया पढ़ा लिखा और समझदार हो तो ठीक वरना उसे झूठे सच्चे कानून बताकर लोगों से दूर करवा देते है। नतीजा जनता द्वारा चुनी गई सरकार कब इन अधिकारियों की बातों में आकर जनता से किनारा कर लेती है मालूम ही नहीं चलता। नतीजा हर पांच साल में बदले हुए हुजूर सीट पर दिखाई देते है।

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