Sunday, May 6, 2012
महंगाई से रिश्तों पर असर
दोस्तों जाने मुझे ऐसा क्यूं लगता है कि रिश्तों नातों से बढा पैसा हो गया है। जिसके पास है उसके लिए तो और भी बढा है जिसके पास नहीं है वह अपने कर्मचोरी में इस बात का बहाना बना लेता है। आजकल तो पति और पत्नी के रिश्तें भी इस पैसे की वजह से तार तार हो रहे है। हाईकोर्ट के एक जस्टिस से बात हो रही थी उन्होंने भी इस मसले पर चिंता जताई। इन दिनों ऐसा अपराध सामने आ रहा है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। बच्चों की मां आर्थिक रूप से अपने गरीब या सामान्य पति को छोडकर अच्छे कमाने वाले पर पुरूष के साथ भागने लगी है। कलेजे के टुकडे कहलाने वाले बच्चे घर पर इस इंतजार में रहते है कि मां आएगी तो उसको लाड प्यार करेंगी। बेदर्द मां वात्सल्य प्रेम तो दूर की बात स्नेह का संबंध भी तोड कर पैसे के लिए चली जाती है। गुलाबीनगरी की बात करें तो इस तरह के मामलों का ग्राफ तेजी से बढ रहा है। आखिर इसमें कही महंगाई तो जिम्मेदार नहीं। यदि हां तो फिर इन नैतिक रिश्तों के पतन में सरकार ज्यादा जिम्मेदार है।
कुछ दिनों से लगातार थानों में शिकायत मिल रही है कि फलाने की पत्नी और फलाने की बेटी किसी काम से बाजार गई थी जो लौट कर नहीं आई। वहीं कुछ मां बाप अपनी जवान बेटियों को बहला फुसलाकर भगा ले जाने की शिकायतें दर्ज करवा रहे है। उनके हालातों पर गौर किया गया तो वहीं दर्दनाक कहानी निकली। दोस्तों बताएं क्या होगा हमारे समाज के ताने बाने का। रिश्तों को जब तंत्र नष्ट करने लगे तो कौन समाज की बात करेगा। आखिर रिश्तों पर ही तो हमारा समाज टिका हुआ हैं
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बात तो सही कह रहे हो बंधू, लेकिन इनको ढकोसला कहकर खारिज करने वाले ज्यादा है। यहां ठोकर खाने के बाद ही समझने वाले अधिक है।
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