mid reporter
jahan hum desh aur duniyan ke bare main jannne ke alava apne aap ko jaan paye.
Thursday, March 22, 2018
DGP failed in the first test, how will now pass...पहली ही परीक्षा में फेल हो गए डीजीपी...अब कैसे होंगे पास
राजस्थान पुलिस कांस्टेबल आॅनलाइन भर्ती परीक्षा 2017
जयपुर।
राजस्थान पुलिस महानिदेशक ओमप्रकाश गल्ह़ोत्रा पहली ही परीक्षा में फेल हो गए है। फेल भी ऐसे कि ग्रेस अंक भी नहीं मिल पाए। जी हां हम बात कर रहे है राजस्थान आॅनलाइन भर्ती परीक्षा 2017 की। डीजीपी गल्ह़ोत्रा की टीम पहली दफा आॅनलाइन भर्ती परीक्षा का आयोजन कर रही थी। प्रदेश में करीब 16 लाख से अधिक परीक्षार्थी इस परीक्षा में हिस्सा ले रहे थे, लेकिन हरियाणा, उत्तरप्रदेश के गिरोह ने डीजीपी के मंसूबों पर न सिर्फ पानी फेरा, बल्कि इस पहली ही परीक्षा में फेल कर दिया। नतीजा ये निकला कि पूरी परीक्षा को ही रद्द करना पड़ा।
ऐसे बदला पुलिस में परीक्षा का सिस्टम
दरअसल पहले पारंपरिक तरीके से पुलिस भर्ती परीक्षा की जाती थी। इसमें कांस्टेबल बनने वाले शरीर की नाप, बीमारी और दौड़ की क्षमता से आंकलन होता था। समय बदला तो डीजीपी हरिश्चंद्र मीणा ने इसमें शारीरिक क्षमता के साथ ही लिखित परीक्षा कराए जाने को भी तवज्जो देना शुरू किया। इसमें पहले जो दूरी की दौड़ थी, वह कम कर दी गई। इसके बाद परीक्षा में और सुधार करते हुए आधुनिक तरीके से कराए जाने का फैसला किया गया। इसमें डीजीपी ओमेंद्र भारद्वाज ने खाका तैयार किया। उनके बाद डीजीपी मनोज भट्ट ने भी इस प्रक्रिया को सरकार से मंजूरी दिलवाई और गल्होत्रा ने परीक्षा को अंजाम दिया।
फिर लौट रहे पुराने ढर्रे पर
जिस तरह कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में हाइटेक नकल गिरोह पकड़े गए, इससे राजस्थान पुलिस की साख सवालों के घेरे में आ गई। साख बचाने के लिए डीजीपी गल्होत्रा की पूरी टीम ने परीक्षा को रद्द करना ही सही समझा। अब फिर से आॅफलाइन परीक्षा कराए जाने की तैयारी शुरू हो गई है।
— हां ये सही है कि नकल गिरोह के सामने आने के बाद परीक्षा की निष्पक्षता नहीं रह गई थी। परीक्षा पूरी तरह से बगैर नकल के पारदर्शी होनी चाहिए, रद्द परीक्षा नए सिरे से जल्द कराई जाएगी।
ओपी गल्होत्रा, डीजीपी , राजस्थान पुलिस
Wednesday, February 10, 2016
कुचल दो इन आस्तीन के सांपों को
कुचल दो इन आस्तीन के सांपों को
— सबक ले भारतीय सेना से जो उसके जवान बर्फ का सीना चीरकर युवाओं की हिफाजत कर रहा है और आस्तीन के सांप देश में आतंकियों को अपना आइडल मानकर जिंदाबाद के नारे लगा रहे है। थू एेसे सांपों पर
— सबक ले अमरीका से, चाहे कितना विरोध उनके राजनीतिक दलों में हो, लेकिन देश पर आंच आने से पहले वे एकजुट हो जाते है, जबकि हमारे दोयम दर्जे के नेता मफलर और टोपी पहनकर एेसे समय में भी सरकार के खिलाफ मुद्दा तलाशने में जुटे हुए है। थू एेसे नेताओ पर
— सबक ले जापान से जहां के युवाओं ने परमाणु बम से तबाह जापान को तकनीक के मामले में उंचाईयों तक पहुंचा दिया और जेएनयू के युवा सीखते यहां से और बखान आतंकियों का कर रह है। थू एेसे युवाओं पर
— सबक ले दक्षिण कोरिया सरकार से जहां लाख प्रतिबंध की धमकियां मिल रही हो, लेकिन देश की सुरक्षा के मामले में किसी की परवाह नहीं की। देश की सरकार को इस मामले पर सख्ती दिखाते हुए एेसे आस्तीन के सांपों को नासूर बनने से पहले ही कुचलना होगा, भले ही भांड मीडिया और चिंदीचोर इस पर हल्ला मचाए, लेकिन एेसा नहीं हुआ। थू एेसी सरकार पर
— सबक ले ब्रिटेन की पुलिस से जहां क्राइम होने के बाद किसी नेता की स्वीकृति या फिर एफआईआर दर्ज होने का इंतजार नहीं किया जाता। देश से जुड़ा मसला हो तो मौके पर ही फैसला कर देती है, लेकिन हमारी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, सिवाय कानून व्यवस्था बनाने की घटिया हरकत के।
— देश पर मर मिटने की बात करने वाले चंद लोगों को एेसा सबक सिखा देते कि दुबारा एेसी हरकत करने की उनकी औलादें भी नहींे सोच पाती। इसके बाद क्या होता ज्यादा से ज्यादा सस्पेंड। जान तो नहीं देनी पड़ रही देश के लिए। इतना भी नहीं कर सकते। आतंकी अफजल को अपना बाप मानने वालों को भी उसके पास पहुंचा देना था वो भी बगैर रास्ते। देा भी पहुंच जाते तो बाकियों के समझ में आ जाती। सही कह रहा हूं इतना गुस्सा है कि यदि गलती से रास्ता भटक गया तो ....
Sunday, May 6, 2012
महंगाई से रिश्तों पर असर
दोस्तों जाने मुझे ऐसा क्यूं लगता है कि रिश्तों नातों से बढा पैसा हो गया है। जिसके पास है उसके लिए तो और भी बढा है जिसके पास नहीं है वह अपने कर्मचोरी में इस बात का बहाना बना लेता है। आजकल तो पति और पत्नी के रिश्तें भी इस पैसे की वजह से तार तार हो रहे है। हाईकोर्ट के एक जस्टिस से बात हो रही थी उन्होंने भी इस मसले पर चिंता जताई। इन दिनों ऐसा अपराध सामने आ रहा है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। बच्चों की मां आर्थिक रूप से अपने गरीब या सामान्य पति को छोडकर अच्छे कमाने वाले पर पुरूष के साथ भागने लगी है। कलेजे के टुकडे कहलाने वाले बच्चे घर पर इस इंतजार में रहते है कि मां आएगी तो उसको लाड प्यार करेंगी। बेदर्द मां वात्सल्य प्रेम तो दूर की बात स्नेह का संबंध भी तोड कर पैसे के लिए चली जाती है। गुलाबीनगरी की बात करें तो इस तरह के मामलों का ग्राफ तेजी से बढ रहा है। आखिर इसमें कही महंगाई तो जिम्मेदार नहीं। यदि हां तो फिर इन नैतिक रिश्तों के पतन में सरकार ज्यादा जिम्मेदार है।
कुछ दिनों से लगातार थानों में शिकायत मिल रही है कि फलाने की पत्नी और फलाने की बेटी किसी काम से बाजार गई थी जो लौट कर नहीं आई। वहीं कुछ मां बाप अपनी जवान बेटियों को बहला फुसलाकर भगा ले जाने की शिकायतें दर्ज करवा रहे है। उनके हालातों पर गौर किया गया तो वहीं दर्दनाक कहानी निकली। दोस्तों बताएं क्या होगा हमारे समाज के ताने बाने का। रिश्तों को जब तंत्र नष्ट करने लगे तो कौन समाज की बात करेगा। आखिर रिश्तों पर ही तो हमारा समाज टिका हुआ हैं
Thursday, December 15, 2011
मैं रामगढ बांध हूं....
.... मैरे जन्मदाता जयपुर के पूर्व महाराजा
माधोसिंह 1895 में नीवं लागाकर मुझे पाला पोसा और मेरा अस्तितिव 1903 में
आ गया था...उन्होंने मुझे गुलाबीनगरी के लोगों की सेवा करने के लिए पैदा
किया और वह वह काम मैने करीब सौ साल तक लोगों को पानी पिला कर किया.....
इन सो सालों में लोगों ने मुझे काफी दुलार भी दिया.. और मेरी आगोश में
बैठकर सुख दुख के लम्हे भी गुजारे... लेकिन आज मैं बरबादी की कगार पर
खाडा हूं... जिनकी परेशानियो में मै गवाह रहा... आज उन्होंने भी मुझसे
मौड लिया है.. मैरे दम पर लोगं के आशीर्वाद लेने वाले और जेब भरने वाले
सरकारी महकमे ने भी मुंह मोडकर जता दिया है कि ढलते सूरज को सलाम नही
किया जाता... यही कारण है कि वे लोग बीसलपुर की और मुंह कर चुके
हैं..लेकिन कोई ये तो जाने की मेरी इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है...
लोग अभी भी मेरे पेट को चीर कर पानी निकालने में कोई कसर नही छोड रहे
हैं.... जबकि मेरे लिए आने वाले पानी में खुद सरकारी विभागों ने यंहा तक
की जो लोग खेती करते हैं उन्होंने भी पत्तरों को बांधकर रोडे अटका
दिये... कुछ लोगों को दर्द भी होगा... लेकिन ये दर्द सिर्फ उनकी जुबा से
टेलीविजन के चेहरों तक सिमट गया है... अब लोग आते है मेरी बदहाली पर हंसी
उडाकर लौट जाते हैं... जिन लोगों ने एनीकट्स बनाये तलाई बनाई वे लोग अब
सिर्फ और सिर्फ भगवान को दोश देकर अपने आपको बचा रहे हैं..
माधोसिंह 1895 में नीवं लागाकर मुझे पाला पोसा और मेरा अस्तितिव 1903 में
आ गया था...उन्होंने मुझे गुलाबीनगरी के लोगों की सेवा करने के लिए पैदा
किया और वह वह काम मैने करीब सौ साल तक लोगों को पानी पिला कर किया.....
इन सो सालों में लोगों ने मुझे काफी दुलार भी दिया.. और मेरी आगोश में
बैठकर सुख दुख के लम्हे भी गुजारे... लेकिन आज मैं बरबादी की कगार पर
खाडा हूं... जिनकी परेशानियो में मै गवाह रहा... आज उन्होंने भी मुझसे
मौड लिया है.. मैरे दम पर लोगं के आशीर्वाद लेने वाले और जेब भरने वाले
सरकारी महकमे ने भी मुंह मोडकर जता दिया है कि ढलते सूरज को सलाम नही
किया जाता... यही कारण है कि वे लोग बीसलपुर की और मुंह कर चुके
हैं..लेकिन कोई ये तो जाने की मेरी इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है...
लोग अभी भी मेरे पेट को चीर कर पानी निकालने में कोई कसर नही छोड रहे
हैं.... जबकि मेरे लिए आने वाले पानी में खुद सरकारी विभागों ने यंहा तक
की जो लोग खेती करते हैं उन्होंने भी पत्तरों को बांधकर रोडे अटका
दिये... कुछ लोगों को दर्द भी होगा... लेकिन ये दर्द सिर्फ उनकी जुबा से
टेलीविजन के चेहरों तक सिमट गया है... अब लोग आते है मेरी बदहाली पर हंसी
उडाकर लौट जाते हैं... जिन लोगों ने एनीकट्स बनाये तलाई बनाई वे लोग अब
सिर्फ और सिर्फ भगवान को दोश देकर अपने आपको बचा रहे हैं..
Sunday, February 27, 2011
शेर नहीं फलसफा हैं ये
मुहब्बत में लोग जीते हैं यारों, गम में भी कोई जिया करो।
गम में तो सभी पीते है दोस्त, मुहब्बत में भी तो कोई पिया करो।।
- दिनेश गौतम 'चंचलÓ
गम में तो सभी पीते है दोस्त, मुहब्बत में भी तो कोई पिया करो।।
- दिनेश गौतम 'चंचलÓ
भ्रष्टाचार के मैदान में 'वैभवÓ
dinesh gautam, 97722667
पूर्व मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय महासचिव वसुंधरा राजे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले नेताजी हाशिए पर आ सकते है। उसका कारण यह है कि पिछले दो सालों में यह सरकार के कई घोटालें सामने आ चुके है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने भाषणों में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कहते तो हैं, लेकिन करने वाला ही कहने लगे तो क्या होगा। यही हाल रहने से भ्रष्टाचार घटने की बजाय बढ़ता दिखाई पड़ रहा है। हाल ही एक ताजा मामला अजमेर का सामने आया है जिसमें मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलोत का नाम भी आया है। सच्चाई कितनी है इसे बड़े अखबारों ने कमाई की अपनी मजबूरी का हिस्सा मान नहीं छापा। एक दो छुटभैया ने हिमाकत की, लेकिन नंगाड़ों में तूती की आवाज का असर क्या होता सो कुछ नहीं हुआ।
वसुंधरा की ताजपोशी से एकबार फिर सुस्त प्रशासन से तंग आ चुके लोगों की उम्मीद जागी, अंदाज के तौर पर पहला ही वार इसी मुद्दे पर कर अपने तेवर दिखाकर किया। हालांकि राहत किसको कितनी मिल पाएगी इसमें संदेह है, लेकिन विपक्ष जरूर मजबूत हो जाएगा।
गहलोत सरकार एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री पर हमला करने के लिए २२हजार करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार के जिन्न को बाहर निकालने की कोशिश करेंगे। आदत के अनुसार निजी कमेंट्स देकर भी यह कहना कि मैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करता। महंगाई पर नए सुर तलाशना जैसे काम अब सरकार करेंगी।
प्रशंसक नहीं, प्रशासनिक पकड़ की बात है
आपको लग रहा है कि मैं वसुंधरा का प्रशंसक हूं, लेकिन ऐसा नहीं है। उनकी सरकार में सबसे पहले उनके खिलाफ खबर भी मैंने ही लगाई थी। मुझे याद है अखबार में एक लेख छपा था कि 'इफ कर ना, बट कर, वसुंधरा कहें जो झट करÓ इससे अंदाजा हो जाता है कि उसकी प्रशासनिक पकड़ कितनी मजबूत थी। कलेक्टर कांफ्रेस में एक कलेक्टर को दौरा पड़ गया था।
आपस में न उलझे भाजपा
राज्य की राजनीति में अचानक हलचल शुरू हो गई। भाजपा महासचिव वसुंधरा राजे को फिर से नेता प्रतिपक्ष का ताज क्या मिला, सत्ता के गलियारों में ही नहीं। आम लोगों में भी एक चमक और माहौल दिखाई दिया। जिंदा होकर भी मुर्दे के समान व्यवहार कर रही बीजेपी को तो ऑक्सीजन मिल गया, लेकिन पार्टी के क्या वे नेता चुप बैठेंगे जो फिर से हाशिए पर धकेल दिए जाएंगे। जब कांग्रेस राज्य में सत्तारूढ हुई तो भाजपा की अंदरूनी कलह चारों तरफ से खुली हुई थी। कांग्रेस के नेताओं ने इसी का फायदा उठाते हुए अपनी सरकार बनाई। एक बार फिर वसुंधरा के आने से ज्यादातर विधायक खुश है, लेकिन जिन्हें पीड़ा होगी कहीं वे विपक्ष का नेतृत्व कर रही नेता के पैर ही काटने की कोशिश में न जुट जाए। भाजपा को फायदे से हमें कोई सरोकार नहीं, लेकिन विपक्ष की कमजोरी से सरकार लोगों पर महंगाई और टेक्स के मनमाने बोझ लगा पाने में सफल हो जाएग्री। जिसे सभी को मिलकर रोकना पड़ेगा, नही तो लोग सामूहिक आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने को विवश होंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय महासचिव वसुंधरा राजे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले नेताजी हाशिए पर आ सकते है। उसका कारण यह है कि पिछले दो सालों में यह सरकार के कई घोटालें सामने आ चुके है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने भाषणों में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कहते तो हैं, लेकिन करने वाला ही कहने लगे तो क्या होगा। यही हाल रहने से भ्रष्टाचार घटने की बजाय बढ़ता दिखाई पड़ रहा है। हाल ही एक ताजा मामला अजमेर का सामने आया है जिसमें मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलोत का नाम भी आया है। सच्चाई कितनी है इसे बड़े अखबारों ने कमाई की अपनी मजबूरी का हिस्सा मान नहीं छापा। एक दो छुटभैया ने हिमाकत की, लेकिन नंगाड़ों में तूती की आवाज का असर क्या होता सो कुछ नहीं हुआ।
वसुंधरा की ताजपोशी से एकबार फिर सुस्त प्रशासन से तंग आ चुके लोगों की उम्मीद जागी, अंदाज के तौर पर पहला ही वार इसी मुद्दे पर कर अपने तेवर दिखाकर किया। हालांकि राहत किसको कितनी मिल पाएगी इसमें संदेह है, लेकिन विपक्ष जरूर मजबूत हो जाएगा।
गहलोत सरकार एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री पर हमला करने के लिए २२हजार करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार के जिन्न को बाहर निकालने की कोशिश करेंगे। आदत के अनुसार निजी कमेंट्स देकर भी यह कहना कि मैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करता। महंगाई पर नए सुर तलाशना जैसे काम अब सरकार करेंगी।
प्रशंसक नहीं, प्रशासनिक पकड़ की बात है
आपको लग रहा है कि मैं वसुंधरा का प्रशंसक हूं, लेकिन ऐसा नहीं है। उनकी सरकार में सबसे पहले उनके खिलाफ खबर भी मैंने ही लगाई थी। मुझे याद है अखबार में एक लेख छपा था कि 'इफ कर ना, बट कर, वसुंधरा कहें जो झट करÓ इससे अंदाजा हो जाता है कि उसकी प्रशासनिक पकड़ कितनी मजबूत थी। कलेक्टर कांफ्रेस में एक कलेक्टर को दौरा पड़ गया था।
आपस में न उलझे भाजपा
राज्य की राजनीति में अचानक हलचल शुरू हो गई। भाजपा महासचिव वसुंधरा राजे को फिर से नेता प्रतिपक्ष का ताज क्या मिला, सत्ता के गलियारों में ही नहीं। आम लोगों में भी एक चमक और माहौल दिखाई दिया। जिंदा होकर भी मुर्दे के समान व्यवहार कर रही बीजेपी को तो ऑक्सीजन मिल गया, लेकिन पार्टी के क्या वे नेता चुप बैठेंगे जो फिर से हाशिए पर धकेल दिए जाएंगे। जब कांग्रेस राज्य में सत्तारूढ हुई तो भाजपा की अंदरूनी कलह चारों तरफ से खुली हुई थी। कांग्रेस के नेताओं ने इसी का फायदा उठाते हुए अपनी सरकार बनाई। एक बार फिर वसुंधरा के आने से ज्यादातर विधायक खुश है, लेकिन जिन्हें पीड़ा होगी कहीं वे विपक्ष का नेतृत्व कर रही नेता के पैर ही काटने की कोशिश में न जुट जाए। भाजपा को फायदे से हमें कोई सरोकार नहीं, लेकिन विपक्ष की कमजोरी से सरकार लोगों पर महंगाई और टेक्स के मनमाने बोझ लगा पाने में सफल हो जाएग्री। जिसे सभी को मिलकर रोकना पड़ेगा, नही तो लोग सामूहिक आत्महत्या करने जैसे कदम उठाने को विवश होंगे।
Sunday, February 6, 2011
कुछ मन का, मन वालों से
dinesh gautam,9772222667
लोग पता नहीं क्यों जिम्मेदारी से जी चुराते है। ऐसा नहीं है कि मैं ऐसा नहीं करता, लेकिन दूसरों के बारे में पता नहीं ये जानकर अच्छा क्यों नहीं लगता। मैने कई दफा अपनी जिम्मेदारी और सरकार से वेतन पाने वालों की जिम्मेदारी को समझने की कोशिश की। उनकी जगह अपने आप को बिठाकर उनकी परेशानी भी जानना चाहा। यहां तक की उनके परिवार और मिलने वाली सुख सुविधाओं पर भी विचार किया तो लगा कि कुछ लोगों को छोड़ सभी अपने काम से जी चुराते है। कुछ लोग है जो काम को व्यक्तिगत मानते हुए पर्सनली इंटरेस्ट दिखाते है, लेकिन हकीकत में ऐसे लोगों की संख्या नाम मात्र की है। यहां तक की सरकार की ओर से मिलने वाली बहुत सी सुख सुविधाओं में थोड़ी भी कटौती इनको सहन नहीं होती। वेतन बढ़ाने की मांग हो तो बगैर अपने काम के बारे में सोंचे शामिल हो जाना तो इनकी फितरत है। ऐसे में बार-बार जिम्मेदारों की बात करना बेमानी सा हो गया है।
आईएएस लेते है हराम की पगार
कर्मचारियों के बारे में कहा जाता है कि वे तो काम से जी चुराते है , लेकिन सबसे बडे ओहदे पर बैठे ये बडे साहब भी हराम की पगार लेने से नहीं चूकते। सरकारी नीतियों के पालन के नाम पर लाखों करोड़ों के घोटाले तो इनके बाएं हाथ का कमाल है। कुछ साहब तो इस पद को केवल विभागीय मंत्री और मुखिया की चापलूसी के लायक ही मानते है। वैसे भी ओहदेदारों की काली कमाई देश की राजधानी के जरिए पता नहीं कहां जा रही है। जैसे ही कोई अवकाश मिलता है। ये ओहदेदार दिल्ली का टिकट कटा दो नंबर से कमाया गया रुपया रखने रवाना हो जाते है। नीति निर्धारक बनने वाले ये अधिकारी सभी नीतियों में अपना फायदे को रखकर चलते है। सरकार का मुखिया पढ़ा लिखा और समझदार हो तो ठीक वरना उसे झूठे सच्चे कानून बताकर लोगों से दूर करवा देते है। नतीजा जनता द्वारा चुनी गई सरकार कब इन अधिकारियों की बातों में आकर जनता से किनारा कर लेती है मालूम ही नहीं चलता। नतीजा हर पांच साल में बदले हुए हुजूर सीट पर दिखाई देते है।
लोग पता नहीं क्यों जिम्मेदारी से जी चुराते है। ऐसा नहीं है कि मैं ऐसा नहीं करता, लेकिन दूसरों के बारे में पता नहीं ये जानकर अच्छा क्यों नहीं लगता। मैने कई दफा अपनी जिम्मेदारी और सरकार से वेतन पाने वालों की जिम्मेदारी को समझने की कोशिश की। उनकी जगह अपने आप को बिठाकर उनकी परेशानी भी जानना चाहा। यहां तक की उनके परिवार और मिलने वाली सुख सुविधाओं पर भी विचार किया तो लगा कि कुछ लोगों को छोड़ सभी अपने काम से जी चुराते है। कुछ लोग है जो काम को व्यक्तिगत मानते हुए पर्सनली इंटरेस्ट दिखाते है, लेकिन हकीकत में ऐसे लोगों की संख्या नाम मात्र की है। यहां तक की सरकार की ओर से मिलने वाली बहुत सी सुख सुविधाओं में थोड़ी भी कटौती इनको सहन नहीं होती। वेतन बढ़ाने की मांग हो तो बगैर अपने काम के बारे में सोंचे शामिल हो जाना तो इनकी फितरत है। ऐसे में बार-बार जिम्मेदारों की बात करना बेमानी सा हो गया है।
आईएएस लेते है हराम की पगार
कर्मचारियों के बारे में कहा जाता है कि वे तो काम से जी चुराते है , लेकिन सबसे बडे ओहदे पर बैठे ये बडे साहब भी हराम की पगार लेने से नहीं चूकते। सरकारी नीतियों के पालन के नाम पर लाखों करोड़ों के घोटाले तो इनके बाएं हाथ का कमाल है। कुछ साहब तो इस पद को केवल विभागीय मंत्री और मुखिया की चापलूसी के लायक ही मानते है। वैसे भी ओहदेदारों की काली कमाई देश की राजधानी के जरिए पता नहीं कहां जा रही है। जैसे ही कोई अवकाश मिलता है। ये ओहदेदार दिल्ली का टिकट कटा दो नंबर से कमाया गया रुपया रखने रवाना हो जाते है। नीति निर्धारक बनने वाले ये अधिकारी सभी नीतियों में अपना फायदे को रखकर चलते है। सरकार का मुखिया पढ़ा लिखा और समझदार हो तो ठीक वरना उसे झूठे सच्चे कानून बताकर लोगों से दूर करवा देते है। नतीजा जनता द्वारा चुनी गई सरकार कब इन अधिकारियों की बातों में आकर जनता से किनारा कर लेती है मालूम ही नहीं चलता। नतीजा हर पांच साल में बदले हुए हुजूर सीट पर दिखाई देते है।
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