Sunday, March 7, 2010

कैदियों से डरते है सुरक्षाकर्मी

चित्तौडग़ढ़ से कैदियों की फरारी का मामला हो या जयपुर जेल से वसूली के लिए कैदियों की ओर से मिलने वाली धमकी। इन दिनों सूर्खियों में जेल और कैदी ही बने है। प्रशासन और सरकार इस मामले में बेबस नजर आ रही है। बरसों से जेल में जहां सिपाहियों की नई भर्ती नहीं हुई वहीं मोबाइल पर रोक लगाने के लिए जैमर के आदेश मिलने में ही दशक गुजार दिए। ऐसे में डीजी जेल ओमेन्द्र भारद्वाज से डीबी स्टार रिपोर्टर दिनेश गौतम ने बात की तो उन्होंने हालात सुधरने का भरोसा तो दिलाया, लेकिन उन्हें भी अंदाजा है कि सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा।
इन दिनों जेल की बडी चर्चा है?
्रइसमें हम भी क्या कर सकते है। अकेले हमारे बूते सब कुछ सुधार नहीं हो सकता।
क्या कारण है कि जेल की व्यवस्थाएं गड़बड़ा रही है?
एक कारण हो तो सुधारा भी जाए। कई कारण है।
जैसे ?
जयपुर जेल के बारे में बताए तो यहां २२०० कैदियों की है, लेकिन पांच हजार से ज्यादा कैदी है। ऐसे में स्टाफ की कमी होना तो स्वाभाविक है।
आपके व्यवस्थाएं सुधारने के लिए सरकार को नहीं लिखा?
कितनी ही दफा इस बारे में लिखा जा चुका है। होता तो कुछ है नहीं, हम क्या कर सकते है।
जानकारी मिली है कि जयपुर जेल को भी दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है?
नहीं ... पहले ही सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी है। दूसरी एक जेल निर्माण में करीब सौ करोड़ रुपए की लागत आती है। अन्य व्यवस्थागत खर्चे अलग है सो।
जेल में जैमर लगाने की योजना क्यों पूरी नहीं हो रही है?
योजना प्रोसेजर में है। आदेश जारी होने वाले है। ...लेकिन उससे भी क्या फायदा होगा।
क्यों जैमर से कैदियों की मोबाइल पर होने वाली बातचीत पर असर नहीं होगा?
बगैर मिलीभगत के तो काम नहीं हो सकता। लेकिन सबूत के अभाव में किसी पर आरोप भी नहीं लगा सकते। रही बात कैदियों की तो उनसे भी सुरक्षाकर्मी डरते है।
क्या कैदियों से सुरक्षाकर्मी डरते है?
बिल्कुल...बडे अपराधियों का इतना खौफ है कि सुरक्षाकर्मी उनकी तलाशी लेने से कतराते है। ऐसे में मोबाइल लाने व ले जाने के लिए आसानी रहती है।
तो क्या जांच सही नहीं होती?
जांच कैसे सही हो सकती है। शाम को ६ बजे तक जांच करनी पड़ती है। ये व्यवस्था पहले लाइट नहीं होने के कारण थी। लेकिन अब इसे बढ़ाकर रात आठ बजे तक किया जाना चाहिए। जांच के लिए अलग से एजेंसी होनी चाहिए। जो बाहर से आने वाले कैदियों की जांच अच्छी तरह से कर सके।
जेल में सुधार के लिए क्या चल रहा है?
कुछ नहीं जब तक कैदियों के मामले का त्वरित निस्तारण नहीं होगा सुधार भी नजर नहीं आएगा।
मतलब?
चित्तौडग़ढ़ मामले में यही तो हुआ। फरार होने वाले कैदी ६ साल से बंद थे और अभी उनकी सजा ही तय नहीं हो पाई थी। वहां पर पिछले दो साल से जज की सीट खाली पड़ी है। कैदियों की सुनवाई नहीं होने से जेलें भर रही है। राज्य की सभी जेलों में कैपेसिटी से ज्यादा कैदी है।
सरकार की ओर से कोई राहत मिलने की उम्मीद है?
सरकार ने इस मामले में एक एडिशनल चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया है। जल्द ही कमेटी जेलों में सुधार के लिए काम करेगी।
नई जेलें बनाने की जरूरत पैदा नहीं हो रही?
जेलों में स्टाफ तो है नहीं। जो है वे भी रिटायरमेंट की अर्जी लगाते है। पिछले साल ही सात फीसदी अधिकारियों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट के लिए आवेदन किया था। हमने उनको समझाया और कुछ दिनों तक काम करने के लिए मनाया है। अभी भी कई आवेदन आए हुए है।
लेकिन कैदियों की संख्या भी तो बढ़ रही है?
न्यायालय में पेंडिंग चल रहे मामलों का निस्तारण हो जाता है तो बहुत से कैदियों को भी राहत मिलेगी। सरकार को इसमें सालाना डेढ़ सौ करोड़ बजट बढ़ाना पड़ेगा सो अलग। ऐसे में क्या सरकार का बजट कैदियों तक की सीमित नहीं हो जाए।
सुरक्षाकर्मियों के मानसिक तनाव को दूर करने के लिए कुछ होता है जेल में ?
मानसिक तनाव को दूर करने के लिए समय किसके पास है। जेल में तैनात कर्मचारियों पर वर्क लोड इतना है कि पुलिस महकमे में सबसे ज्यादा मृत्युदर रहती है। ऐसे में लोग तो नौकरी छोडऩे को तैयार है।
आपने अपने समय में क्या सुधार किए है?
सुधार एक दिन में नहीं होता। सरकार आजादी के बाद से कहती रही है कि गरीबी मिटा देंगे लेकिन आज तक तो नहीं मिटी। सरकार के प्रयास चल रहे है वैसे ही हमारे भी जेल में सुधार के प्रयास चल रहे है।

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