Sunday, March 28, 2010

समान कायदा, अधिकारी का बदला नजरिया

केस संख्या - मानसरोवर के आवास संख्या ३१/८२/११ में सार्वजनिक छत पर निर्माण कर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा था। २७ दिसम्बर, ०७ को नगर निगम कार्यालय में शिकायत की गई। आयुक्त के कहने पर निगम की विजिलेंस शाखा के जिम्मेदार अधिकारी और इलाके के जेईएन ने जांच कर हो रहे निर्माण को अतिक्रमण बताया।
केस संख्या - मानसरोवर के आवास संख्या ३१/८१/१२ में सार्वजनिक छत पर निर्र्माण की शिकायत आई तो टालने के लिए नगर निगम के जिम्मेदारों ने क्षेत्राधिकार आवासन मंडल का बताते हुए शिकायत वहां भेज दी। मंडल के उपआवासन आयुक्त ने मामले की जांच करवाकर निर्माण को अतिक्रमण मानते हुए नगर निगम को तोडऩे की जिम्मेदारी सौंप दी। निगम अधिकारियों ने मिलीभगत कर अतिक्रमण को अवैध निर्माण बताकर छत पर कब्जा करने वालों को बचा लिया।
कायदा समान, अधिकारियों की आंखों में फर्ख
सरकारी जमीन पर कब्जा करने को अतिक्रमण कहा जाता है, जबकि बगैर स्वीकृति के खुद की जमीन पर निर्माण करने को अवैध निर्माण। शहर के स्वरूप को बिगाडऩे वाले इन कारनामों को सरकार ने कानूनी तौर पर गलत माना है, लेकिन अफसरों की मिलीभगत से शहर में दोनों ही तरीके के काम धड़ल्ले से हो रहे है। शहर के बिगड़ रहे हालातों को देख सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी से इस मामले में शपथ पत्र भी मांगा है।
केस स्टडी के दोनों मामलों पर नजर डाले तो दोनों एक जैसे ही मामले है लेकिन जिम्मेदार लोगों ने इसमें फर्ख पैदाकर अपनी बदनीयति उजागर कर दी। आवासन मंडल की मानसरोवर योजना में छत को सरकारी माना है। छत पर निर्माण करने को अतिक्रमण मान कर कार्रवाई की जाती है, लेकिन जहां अधिकारियों की निर्माण करने वालों से सैटिंग बैठ जाती है वहीं उस निर्माण को अवैध निर्माण कहकर अपराध को हल्का कर दिया जाता है। ...क्योंकि अवैध निर्माण को तो कंपाऊंड किया जा सकता है, लेकिन अतिक्रमण के मामले में तीन माह से तीन साल तक की कैद या 20 से 50 हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारी लोगों से मिलकर सरकारी छतों को खा रहे है।
पहले केस में जहां नगर निगम द्वारा राजस्थान नगर पालिका अधिनियम १९५९ की धारा २०३ के तहत अतिक्रमी को नोटिस दिया गया था जबकि नए कानून में समान मामलों में कार्रवाई के लिए राजस्थान नगर पालिका अधिनियम २००९ की धारा २४५ के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए थी। जिसमें अतिक्रमण करने के मामले तीन साल की सजा और २० हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। जिसे नगर निगम कम्पाउंड भी नहीं कर सकती है। परंतु अतिक्रमण और अतिक्रमी को बचाने के लिए उद्देश्य से गलत नोटिस दिया गया। इस तरह के कारनामों से जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही तो दिखाई दे रही है जबकि राजस्थान उच्च न्यायालय की खंड पीठ ने शहर में हो रहे अतिक्रमण और अवैध निर्माणों के विरूद्ध स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेकर २० अक्टूबर २००४ को निर्णय सुनाया गया था, जिसकी भी सीधे तौर पर अवमानना है।
बचाने का रास्ता पार्टी ने असर नहीं लिया
नगर निगम की ओर से अतिक्रमण और अवैध निर्माण की शिकायत पर भेजे जाने वाले नोटिस में निर्धारित समय के बाद भी कार्रवाई करने की बजाय लीपापोती करते है। इसका उदाहरण है ज्यादातर नोटिसों के जवाब में निगम अधिकारियों ने पार्टी द्वारा नोटिस का असर नहीं लेने जैसे जुमले प्रयोग कर खानापूर्ति की जा रही है। जबकि जवाब नहीं आने पर निगम अतिक्रण को स्वयं हटाने उस पर होने वाले खर्चे का अधिकारी है।
फाइल की कहानी भी अजीब
सरकारी छत पर हो रहे निर्माण शिकायत की एक फाइल डीबी स्टार को मिली। फाइल को देखा तो उसकी कहानी भी अजीब है। तत्कालीन महापौर पंकज जोशी ने सरकारी छत पर किए गए अनाधिकृत निर्माण के विरूद्ध तत्काल कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए तत्कालीन विजिलिेंस कमिश्नर संग्रामसिंह को लिखा। संग्रामसिंह ने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि मानसरोवर जोन आयुक्त ही इस पर कार्रवाई कर सकते है। मानसरोवर जोन आयुक्त ने ९ नवम्बर, ०९ में अतिक्रमण को अवैध निर्माण बताकर नोटिस जारी कर दिया और तीन दिन में हटाने का अल्टीमेटम दिया। उसके बाद २१ नवंबर को नोटिस का सायल द्वारा असर नहीं लिया गया लिखकर चालान पेश कर दिया।
मानसरोवर जोन आयुक्त ओपी गुप्ता से सवाल
मानसरोवर योजना की छत नगर निगम की नजर में क्या है। अवैध निर्माण या अतिक्रमण?
सरकार की नजर में छत तो सरकारी है, जबकि आवासी इसे अपनी बताते है।
आपके जोन में सेम नेचर के मामले में अलग-अलग पैमाना क्यों है?
इसकी मुझे जानकारी नहीं है। मैं तो अभी जनवरी में ही यहां आया हूं। जानकारी करने के बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
लेकिन अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई तो होती ही नहीं?
नहीं ऐसा नहीं है। शिकायत आने के बाद कार्रवाई जरूर होती है।
लेकिन दोनों ही मामलों में आज तक कोई तुड़ाई नहीं हुई?
इसकी फाइल देखकर ही कुछ कह सकता हूं

1 comment:

  1. kya bat hai thoda or officers se sawal hote to jyada mazza aata.

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