Monday, March 8, 2010

डीजल-डिपो रोडवेज का,कमाई कंपनी की

- अप्रैल से शुरू होनी है योजना, फिलहाल नहीं है कोई चालक-परिचालक
- रोडवेज के सीएमडी को अध्यक्ष बनाकर ले रहे है फायदा
- डीजल और डिपो रोडवेज के, कमाई कंपनी की
जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड अप्रैल से शहर में ४०० बसें चलाने जा रही थी, लेकिन मार्च शुरू हो गया पर २९ बसें ही तैयार हो पाई है। ऐसे में कर्ज लेकर खरीदी गई नई बसों से शहरी यातायात में कोई फायदा नहीं होगा। दीगर है कि अभी भी इन बसों को चलाने वालों का अता-पता है और न ही उनके रख रखाव की कोई जगह। लिहाजा सांगानेर आगार में इन दिनों बीआरटीएस बसों ने कब्जा जमा रखा है।
सिटी ट्रांसपोर्ट के लिहाज से जेडीए और जयपुर नगर निगम की बनाई गई संयुक्त कम्पनी जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड की ओर से ४०० बसें चलानी है। इसके लिए जेसीटीएसएल को जवाहरलाल नेहरू अरबन रिन्यूअल मिशन के तहत केन्द्र सरकार से उधारी पर पैसा मिला है। पूर्व योजना के तहत अप्रैल से शुरू होने वाली बसों के लिए कंपनी ने फिलहाल कोई तैयारी नहीं की है। यहां तक की अभी भी यह तय नहीं हो पाया है कि इन बसों में चालक-परिचालक कौन होंगे? सवाल यह खड़ा होता है कि यदि इन बसों में रोडवेज के ही कर्मचारियों को लगाया जाना है तो अब तक इस बारे में किसी भी तरह का कोई एग्रीमेंट क्यों नहीं हुआ। वैसे फिलहाल कंपनी के चैयरमेन पीके देब जो कि रोडवेज के सीएमडी भी है ने कंपनी की बसों के रख रखाव के लिए रोडवेज की जगह को उपयोग में लेने की छूट दे रखी है। इन बसों को चलाने के लिए कंपनी के चार ओहदेदारों को जिम्मेदारी दे रखी है, जिसमें एक तो रोडवेज के सीएमडी को चैयरमेन, डीआईजी मालिनी अग्रवाल को एमडी, प्रीति माथुर को सचिव और रिटायर्ड रोडवेज अधिकारी आरएस नवलकर को एडवाइजर की जिम्मेदारी सौंपी है। फिलहाल जो बसें तैयार हो गई है उन्हें रोडवेज के सांगानेर आगार में खड़ी किया हुआ है। यहां तक की तीन चार दफा इन बसों में डाला गया डीजल भी रोडवेज के पेट्रोल पम्पों से ही लिया गया है। कर्मचारियों में असमंजस है कि ये डीजल इन बसों में किसके खाते में डाला जाएगा। मामले में जिम्मेदारों से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि नई बसों का संचालन तो कंपनी ही करेगी। इससे होने वाली कमाई भी कंपनी की जिम्मेदारी रहेगी। रोडवेज के चालक-परिचालक व डिपो के उपयोग के बदले कुछ उन्हें भी दे दिया जाएगा।
नहीं मिलेगी जाम से राहत
चारदीवारी में पार्किंग की समस्या है। इसमें चलने वाली रोडवेज की सिटी बसों की लंबाई के कारण जाम लगना आम बात हो गई है। ऐसे में जेसीटीएसएल कंपनी की ओर से चलने वाली बसों की लंबाई रोडवेज से भी ज्यादा होने से परेशानी में इजाफा ही होगा। सांगानेर आगार प्रबंधक संचालन हेमेंद्र माथुर ने बताया कि रोडवेज की बसों की अधिकतम लंबाई साढ़े ३३ फिट है, जबकि कंपनी बसों की लंबाई ३८ फिट है। रोडवेज की बसों से कंपनी की चौड़ाई भी २ फिट ज्यादा है।
रोडवेज के सीएमडी और जेसीटीएसएल के चैयरमेन पीके देब से सवाल
जेसीटीएसएल की नई बसें कब से शुरू कर रहे है?
हमारा तो प्लान था कि अप्रैल से सभी रूट्स पर शुरू कर देंगे, लेकिन अभी करीब ५० बसें ही मिल पाएगी। इसलिए वैकल्पिक मार्गों पर विचार कर रहे है।
रोडवेज का इसमें कोई शेयर है?
नहीं रोडवेज का कोई शेयर नहीं है।
तो फिर बसों को चलाएगा कौन ?
रोडवेज के चालक-परिचालक होंगे। खर्च और कमाई जेसीटीएसएल की होगी।
रोडवेज क्यों अपने स्टाफ को दूसरे को सौंपेगा। इससे घाटा किसकी जिम्मेदारी होगा?
रोडवेज का कंपनी से एक एग्रीमेंट हुआ है। रोडवेज के चालक परिचालक पर जो खर्च आएगा उसमें पांच प्रतिशत बढ़ाकर कंपनी से वसूला जाएगा। टिकिट और विज्ञापनों से होने वाली कमाई कंपनी की होगी।
मौजूदा बसें ही सड़कों पर जाम लगा देती है तो नई बसें तो पांच फिट ज्यादा लंबी है। परेशानी नहीं आएगी?
मुझे नहीं लगता कि लंबाई की वजह से जाम लगता है। लोगों को नई बसें भी तो मिलेगी।
बसों के लिए डिपो और इंस्फ्रास्ट्रक्चर रोडवेज क्यों देगा?
रोडवेज की बसें कंडम हो चुकी है। नई बसें शहर में चलनी भी चाहिए। कंपनी किसी और से इंस्फ्रास्ट्रक्चर लेती तो रोडवेज से ले लेगी तो क्या फर्ख पड़ेगा। वैसे भी दोनों का मकसद यात्रियों को सुविधा उपलब्ध कराना है।
चारदीवारी में परेशानी नहीं आएगी?
रोडवेज बगैर स्टैंड के रुक जाती थी, लेकिन ये बसें अपने निर्धारित स्टैंड पर ही रुकेगी। इससे मुझे नहीं लगता कि कोई प्रॉब्लम आएगी।
अगर आप रोडवेज के सीएमडी नहीं होते तो भी कंपनी की यही बात मान लेते?
दोनों का मकसद पहले शहरवासियों को सुविधाएं देना है। घाटा और फायदा बाद की बातें है।
सवालों के घेरे में ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड
जयपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड जेसीटीएसएल में फिलहाल तैनात पदाधिकारियों के भी अलग-अलग सुर है जिसे देखकर लगता है कि इनमें ही आपसी तालमेल का अभाव है। जेसीटीएसएल के चेयरमैन पीके देब जहां रोडवेज से कंपनी का एग्रीमेंट हो जाने की जानकारी दे रहे है वहीं कंपनी की मैनेजिंग डाइरेक्टर मालिनी अग्रवाल ऐसे किसी भी एग्रीमेंट का होने से इनकार करती है। ऐसे में रोडवेज और लोगों से जुड़े कई मुद्दे जो सवाल खड़ा कर रहे है क्या जिम्मेदार लोग उन पर गौर फरमाएंगे।
रोडवेज के सीएमडी पीके देब ने डीबीस्टार से बातचीत में कहा है कि कंपनी का रोडवेज से समझौता हो गया जबकि कंपनी की एमडी मालिनी अग्रवाल कहती है कि जल्द ही समझौता होने की उम्मीद है ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कंपनी के दोनों पदाधिकारी बसों को चलाने में रूचि नहीं ले रहे या इनमें कोई तालमेल नहीं है। जानकारों की माने तो जब सारा काम रोडवेज से ही लेना था तो अलग से कंपनी बनाने की जरूरत क्या थी? रोडवेज के कर्मचारी यूनियनों ने सवाल उठाया है कि रोडवेज का ड्राईवर और कंपनी की बसें होगी तो दुर्घटना होने पर क्लेम की जिम्मेदारी किसकी होगी? यूनियन सदस्यों ने यह भी मंशा जताई की क्या कंपनी रोडवेज के चालक-परिचालकों को सभी सुविधाएं देंगी या किराए बतौर कर्मचारी का उपयोग करेगी। मसले पर कंपनी की एमडी मालिनी अग्रवाल ने साफ कहा कि दुर्घटना होने पर क्लेम की जिम्मेदारी कंपनी की होगी। ऐसे में चालक-परिचालकों की जिम्मेदारी को भी होने वाले एग्रीमेंट में उल्लेख किया जाएगा। रोडवेज को किस खाते से कंपनी भुगतान करेंगी तो अग्रवाल का कहना है कि ज्यादा जानकारी एग्रीमेंट होने के बाद ही दे सकती हूं। कंपनी का काम देख रही जेडीए उपायुक्त बीआरटीएस प्रीति माथुर ने बताया कि समझौते की भाषा तैयार है कुछ दिनों बाद सरकार की स्वीकृति मिलने पर समझौता हो जाएगा।

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